संभोग की अलग-अलग अनुभूति
प्रकृति ने स्त्री एवं पुरुष के शरीरों की बनावट में अन्तर किया है, इसलिए दोनों के संभोग की अनुभूति व आनन्द भी अलग-अलग हैं। स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर संभोग करते हैं, लेकिन दोनों के संभोग सम्बंधी अनुभव भिन्न हैं। माना गया है कि पुरुष को संभोग के अन्त में सुख मिलता है और स्त्री सम्पूर्ण संभोग काल में लगातार सुख प्राप्त करती है। पुरुष के समान स्त्रियों में भी स्खलन होता है, जिससे उसके अन्दर विश्राम की इच्छा उत्पन्न होती है।
रति: यह स्त्री-पुरुष का मिलन, संभोग या मैथुन है। इसकी अनुभूति कई तरह से प्राप्त होती है...
रस-स्त्री-पुरुष के यौन अंगों द्वारा अनुभव किया जाने वाला सुख
प्रीति- दिल व दिमाग का सुख
भाव- शारीरिक संपर्क के द्वारा प्रेम बढ़ाना
राग- मन में प्रेम का संचार
वेग-संभोग के दौरान नसों से वीर्य का अलग होना
रत- स्त्री-पुरुष के शारीरिक मिलन की गतिमय अवस्था
संभोग की अलग-अलग अनुभूति
संप्रयोग- स्त्री-पुरुष के शरीर का सुखद संयोग
रत- वाणी,शरीर व चित्त से एक हो जाना
रह- एकान्त में स्त्री-पुरुष का पारस्परिक प्रेम
शयन- स्त्री-पुरुष का पलंग पर साथ सोना
मोहन- संभोग सुख द्वारा मस्तिष्क का शान्त हो जाना
यौन अंग, संभोगकाल व रति सुख की अनुभूति के आधार पर संभोग के नौ-नौ भेद किए गए हैं। वात्स्यायन का मत है कि मनुष्य को संभोग के इन भेदों में समझदारी से समय के अनुसार भेद चुन लेना चाहिए।
काम शास्त्र के विद्वानों का मत है कि प्रथम मैथुन में पुरुष की यौन उत्तेजना थोड़े समय की व तेज होती है। इसके विपरीत स्त्री की यौन उत्तेजना अधिक समय तक चलने वाली एवं धीमी होती है। ज्यों-ज्यों वीर्य बहता है यह स्थिति उल्टी होती चली जाती है।
बाद में पुरुष का समय बढ़ता है और गति धीमी हो जाती है। इसी तरह स्त्री की उत्तेजना का समय कम होता है और गति तेज हो जाती है। ज्यादातर संभोग में स्त्री की धातु स्खलित होने से पहले ही पुरुष स्खलित हो जाता है। चूंकि स्त्रियां स्वभाव से संवेदनशील हैं, इसलिए संभोग काल में पुरुष के आलिंगन-चुंबन से उन्*हें अधिक सुख मिलता है।
प्रकृति ने स्त्री एवं पुरुष के शरीरों की बनावट में अन्तर किया है, इसलिए दोनों के संभोग की अनुभूति व आनन्द भी अलग-अलग हैं। स्त्री-पुरुष दोनों मिलकर संभोग करते हैं, लेकिन दोनों के संभोग सम्बंधी अनुभव भिन्न हैं। माना गया है कि पुरुष को संभोग के अन्त में सुख मिलता है और स्त्री सम्पूर्ण संभोग काल में लगातार सुख प्राप्त करती है। पुरुष के समान स्त्रियों में भी स्खलन होता है, जिससे उसके अन्दर विश्राम की इच्छा उत्पन्न होती है।
रति: यह स्त्री-पुरुष का मिलन, संभोग या मैथुन है। इसकी अनुभूति कई तरह से प्राप्त होती है...
रस-स्त्री-पुरुष के यौन अंगों द्वारा अनुभव किया जाने वाला सुख
प्रीति- दिल व दिमाग का सुख
भाव- शारीरिक संपर्क के द्वारा प्रेम बढ़ाना
राग- मन में प्रेम का संचार
वेग-संभोग के दौरान नसों से वीर्य का अलग होना
रत- स्त्री-पुरुष के शारीरिक मिलन की गतिमय अवस्था
संभोग की अलग-अलग अनुभूति
संप्रयोग- स्त्री-पुरुष के शरीर का सुखद संयोग
रत- वाणी,शरीर व चित्त से एक हो जाना
रह- एकान्त में स्त्री-पुरुष का पारस्परिक प्रेम
शयन- स्त्री-पुरुष का पलंग पर साथ सोना
मोहन- संभोग सुख द्वारा मस्तिष्क का शान्त हो जाना
यौन अंग, संभोगकाल व रति सुख की अनुभूति के आधार पर संभोग के नौ-नौ भेद किए गए हैं। वात्स्यायन का मत है कि मनुष्य को संभोग के इन भेदों में समझदारी से समय के अनुसार भेद चुन लेना चाहिए।
काम शास्त्र के विद्वानों का मत है कि प्रथम मैथुन में पुरुष की यौन उत्तेजना थोड़े समय की व तेज होती है। इसके विपरीत स्त्री की यौन उत्तेजना अधिक समय तक चलने वाली एवं धीमी होती है। ज्यों-ज्यों वीर्य बहता है यह स्थिति उल्टी होती चली जाती है।
बाद में पुरुष का समय बढ़ता है और गति धीमी हो जाती है। इसी तरह स्त्री की उत्तेजना का समय कम होता है और गति तेज हो जाती है। ज्यादातर संभोग में स्त्री की धातु स्खलित होने से पहले ही पुरुष स्खलित हो जाता है। चूंकि स्त्रियां स्वभाव से संवेदनशील हैं, इसलिए संभोग काल में पुरुष के आलिंगन-चुंबन से उन्*हें अधिक सुख मिलता है।
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