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Thursday 18 April 2013

मास्टरबेशन से फर्क नहीं पड़ता

मास्टरबेशन से फर्क नहीं पड़ता

हैं। मैं भी एक जमाने में इस गलतफहमी का शिकार था और इस फील्ड में आने की वजह भी यह थी कि जैसे मेरी गलतफहमी दूर हुई है, वैसे ही दूसरों की भी इस गलतफहमी को दूर कर सकूं। मास्टरबेशन नॉर्मल है, ऐसा कहने से समस्या दूर नहीं होती। इसको उदाहरण और तर्क से समझना होगा, तभी हीनभावना और गलतफहमी दूर हो पाएगी क्योंकि इसकी जड़ें बचपन से हमारे दिमाग में बैठी होती हैं। जो क्रिया सहवास के दौरान स्त्री के प्राइवेट पार्ट में होती है, वही क्रिया मास्टरबेशन के दौरान इंद्रिय हाथ में करती है। जैसे सहवास करने से इंद्रिय छोटी नहीं होती, उसी तरह से मास्टरबेशन करने से भी छोटी नहीं होती।

सच्चाई यह है कि शिथिलता या ढीलापन भी इस्तेमाल न करने से ही आता है। जैसे सहवास से टेढ़ापन नहीं आता, वैसे ही मास्टरबेशन करने से भी इंदिय में टेढ़ापन नहीं आता। ढीलेपन का तो सवाल ही पैदा नहीं होता क्योंकि इस्तेमाल करने से तो मजबूती आती है, बिना इस्तेमाल के नहीं। अंग्रेजी में कहावत है कि इफ यू डोंट यूज इट, यू मे लूज इट। मेरे ख्याल से यह कहावत सौ फीसदी सच है। अफसोस है कि मैं आपको कोई दवा नहीं बता सकता क्योंकि जब यह कोई बीमारी ही नहीं है तो इलाज की भी कोई जरूरत नहीं है।

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